कवि मुकेश गौतम
(1)
देश की समृद्धि तू ही हर रिद्धि सिद्धि तू ही,
तुम ने ही प्यारे इस धरा को सजाया है।
श्रम का प्रतीक तू ही त्याग का है गीत तू ही,
नहीं रूकने का पाठ तू ने पढ़ाया है।।
सब तूझे नोचते हैं थोड़ा भी न सोचते हैं,
मौसम ने भी हमेशा ही जुल्म ढहाया है।
पर कभी थका नहीं थक कर रूका नहीं,
पेट में भी सदा तूने रूखा सूखा खायाll1ll
(2)
सर्दी में गलता रहा गर्मी में तपता रहा,
बारिश में भीगा हुआ लगा रहा काम में।
तनिक आराम नहीं भले पीड़ा खूब सही,
फिर भी वो घर आता खुश हर शाम में ।।
हर दिन फिर नया मन ले के जग गया,
सपने सजाने चला फिर उसी धाम में।
पग पग ठगा गया जिस राह पर गया,
जीता रहा सदा वह अपने ही राम मेंll2ll
रचनाकार
-कवि मुकेश गौतम
डपटा,बूंदी (राज)
(नोट:-अखबार के लिए प्रकाशन हेतु)