उलझकर तन्हाइयों में समझाना नहीं आया
मेरी भीगी पलकों को समझाना नहीं आया,
रूत़ बरसात की आई और आकर चली गई
मेरी अधरों की प्यास को बुझाना नहीं आया,
भूलतीं नहीं तुम्हारे वो सारे अल्फाज़ इश्क के
मैंने ग़ज़ल लिखी उसें गुनगुनाना नहीं आया,
खोला आज राज दिल के जो छुपाने थे सारे
सवालों से पीछा अब तक छुड़ाना नहीं आया,
वो ऐसे मिला था मुझसे कभी जुदा न होगा
जुदा हुआ ऐसे कि पाकर भी पाना नहीं आया ।।
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सुनीता जौहरी
वाराणसी उत्तर प्रदेश