दिल के छाले

 

संन्तोषी दीक्षित

भला किसको बताये हम

जख्म किसको दिखाये हम

सभी के दिल में हैं छाले

कैसे मुस्कराये हम,


कही पर कोई मंजर हो,जो

आंखों को सुकू दे दे,हर तरफ

मौत की चीखें, कैसे चुप कराये

हम,


ऐ मेरे मालिक तुझसे ,बस इतनी

इल्तज़ा मेरी,मेरे हाथों इतनी तो

शिफा दे दे, कि तेरे बन्दों को बचाये हम,


फिर वो दौर आयेगा, निकलेगा

नया सूरज,फिर से फिजाये भी

यहां पर खुशनुमा होगी,चलो खुशियों का ये सपना,सबको दिखाये हम,


संन्तोषी दीक्षित 

कानपुर

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