“बेटा जरा अपनी पत्नी को समझा दे । इस तरह से अब और नहीं चल सकता ।’’ बेटे को देखते ही गुस्से से माँ फट पड़ी ।
“बात क्या है माँ बहुत गुस्से में हो ।’’ अन्दर जाते हुये विजय के कदम रूक गये ।
“देख विजय] ये बहू का रोज-रोज किटी पार्टी में जाना मुझे पसन्द नहीं ।’’
“उसमें हर्ज क्या है माँ] मैं देर-सबेर घर आता हूँ । अपने काम के कारण मजबूर हूँ । उसे घुमा नहीं पाता हूँ । बेचारी बीना बोर हो जाती है । किटी पार्टी के बहाने थोड़ा घूम फिर आती है । यही तो उसके घूमने के दिन हैं । तुम्हें क्या परेशानी है A“
“मै.........मैं........मैं.........भी तो बोर हो जाती हूँ ।...............दिन भर घर बैठे बस तुम्हारे बच्चों को सम्भालती रहती हूँ ।’’ माँ का गुस्सा और भड़क उठा ।
“ओह.....] माँ , तुम कितनी भोली हो । यह तो समय का चक्र है । जब मैं छोटा था तो मेरी दादी घर में रहती थींA हम लोगों को सम्भालती थीं । घर का काम देखती थीं । तुम घूमती थी । वो तुम्हारा समय था । अब भूमिकाएं बदल गई हैं माँ] बहू की भूमिका में बीना है । यह उसका समय है । अब तुम दादी बन गई हो । तुम्हारी भूमिका दादी की है ।’’
“विजय....................’’ आश्चर्य से माँ की ऑंखें फैल गई ।
“सब ठीक हो जायेगा माँ । बस तुम अपनी भूमिका को पहचान लो ।’’ आश्वासन देता हुआ विजय कमरे से बाहर चला गया ।
बेटे की यह भूमिका परिवर्तन की थ्योरी माँ को सकते में डाल गई थी।
नीलम राकेश
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