कभी कभी
अतीत मे
जाकर
घुटता हूँ
सिमटता हूँ
अपने आप मे
खुद के कर्मो के साथ
नसीब का
प्रायश्चित कर
अथाह
समुद्र मे
गोता लगाकर
तभी
दीप की तरह
अक्समात
जल उठती है
विरान ह्रदय मे
नव प्रकाश लिए
आशा की
नवोदित किरण
लगता है
रोशन करेगी
एक दिन
मेरी भी जिन्दगी।
🌷देवकी दर्पण🌷✍️
काव्य कुंज रोटेदा
जिला बून्दी राजस्थान