डॉ मधुबाला सिन्हा
शाद बहुत अवसाद बहुत है
जीने की कोई चाह नहीं है
कई फूल खिले काँटे भी मिले
खुशबू की कोई बात नहीं अब
लाख जतन करूँ जीने की मैं
हृदय उपजता भाव नहीं अब
निराशा से भरा यह जीवन
अब कोई उत्साह नहीं है
शाद बहुत अवसाद बहुत है
जीने की कोई चाह नहीं है
आम अमराई बाग़ बग़ीचा
ना लगता वहाँ कोई झूला
ना गूँजती कोई किलकारी
मिट्टी की खुशबू अब भूला
चकचौंध में गुम रहे सब
नहीं टटोलते मन अँधियारा है
शाद बहुत अवसाद बहुत है
जीने की कोई चाह नहीं है
बहुत मिला जीवन में धोखा
अब कहने की चाह नहीं कोई
दिया अपनापन बहुत ही तूने
और पाने की चाह नहीं कोई
जीवन-पथ पर चली अकेली
साथी की कोई साध नहीं है
शाद बहुत अवसाद बहुत है
जीने की कोई चाह नहीं है......
★★★★★
©डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,चम्पारण