नारी ओ उपहार! नही,
जिसे खेल कर कोई तोड़ दे।
नारी तो ओ अम्बर! है,
जिसकी छाँव में दुनिया पले।।
नारी सरिता की धारा है,
जो हरियाली! भी लाती है।
अगर कोई छेड़े जो उसको
विनाश! बन मंडराती है।
नारी सिर्फ नारी ही नही,
ब्रम्हांड! रचा उसी ने है।
जिस देह पे घमंड है तुमको,
ओ देह गढ़ा उसी ने है।।
नारी बस एक नाम नही,
काम भी बड़ा निराला है।
खून का एक-एक कतरा उसने,
नया संसार बनाने में लुटाया है।
*सरिता लहरे "माही"*
*पत्थलगांव जशपुर (36गढ़)*