सतेन्द्र शर्मा 'तरंग',
जीवन के सफर में मंज़िल पर नजर रख,
कदमों के उतार-चढ़ाव पर समय न गंवा साथी।
जीवन में हार-जीत का न कभी हिसाब रख,
कछुए से निरन्तरता खरगोश से गतिकता सीख साथी।।
है मानव मन तो मानव बन लक्ष्य निर्धारित कर,
कठिनाईयों के पड़ाव पर संयम न गंवा साथी।
जीवन के विराधाभासों से डरकर न कभी रुक,
चींटी से प्रतिबद्धता चिड़िया से उद्यमता सीख साथी।।
है जीवन पुष्पलता नहीं न है सुगम पुष्प उपवन,
राह के कंटकों से उलझ कर हिम्मत न गंवा साथी।
गिरकर उठना सिखाती ठोकरों को शत्रु न समझ,
मृग से धावकता व्याघ्र से निर्भीकता सीख साथी।।
हैं आँधियाँ तो हिस्सा, चुनौती है जीवन डगर,
मुश्किलों के तूफानों से डरकर धैर्य न गंवा साथी।
अपने हौसलों को न्यूनतम न कभी समझ,
वसुधा से धीरजता शैल से शिखरता सीख साथी।।
**सतेन्द्र शर्मा 'तरंग',
११६, राजपुर मार्ग,
देहरादून (उत्तराखंड)