नारी तू अपराजिता

गीता पाण्डेय अपराजिता 

नारी तू अपराजिता,

स्नेह-सुधा रसखान ।

क्षमा,दया,ममतामयी,

लिये अधर मुसकान ।1।


वेद-ऋचा,गीता सहज,

हृदय स्नेह आगार ,

जन-जन हित उपकारिणी,

नवल सृष्टि -ऋंगार ।2।


वीर-प्रसविनी धन्य तू ,

तुझको मेरा प्रणाम ।

बिना तुम्हारे व्यर्थ सब,

तुझसे जग का काम ।3।


तेरे सद् सहयोग से ,

बनते बिगड़े काम ।

सिद्धि दात्री तू है सदा

कृपा करो अविराम ।4।


व्योम नील फैली हुई,

सागर रही समाय।

धूल चटा अरि को सदा,

परचम ये लहराय ।5।


नारी नर की खान है,

 नारी चतुर सुजान।

 नारी से उपजे सदा,

ऋषि, मुनि अरु भगवान।6।


नारी को पूजो सदा ,

शक्ति रही अवतार।

करना नहि अपमान तू ,

महिमा बड़ी अपार।7।


गीता पाण्डेय अपराजिता 

रायबरेली

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