प्रेम



स्मिता पांडेय

अद्भुत और अलौकिक होती है,यह प्रेम की भाषा,

कितना भी तुम इसको बाँटो, रहती है प्रत्याशा ।


प्रेम सदा जोड़े रखता है,मन से मन का धागा,

राधा को हरदम रहती है,कृष्णा की अभिलाषा ।


प्रेम आदि है, प्रेम अन्त है, प्रेम मध्य में छाया,

प्रेमशून्य परिवार देखकर, बढ़ जाती है निराशा ।


उन्नति के पथ पर चलकर तुम, माँ को न बिसराना,

जिसने अपने करकमलों से, तुझको बहुत तराशा ।


ईश्वर की इस रचना को तुम, सत्कर्मों में लगाओ,

परहित करके ही समझोगे, जीवन की परिभाषा ।



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