डाॅ. अनीता शाही सिंह
आज भी खूबसूरत सी आँखें सिकुड़कर
शून्य में खो जाती हैं
किसी इंतज़ार या किसी चेहरे के दीदार को
ये बताना आसान नहीं
या कुछ पूछना उन आँखों से
मेरे लिए असंभव सा है
बीते दिनों के कितने किस्से
उन उदास आँखों की
छिछली सी झील में
किनारों पर ठहरे देखा है
कई सपने तैरते हुए
देखे हैं
तो कुछ यादें बहने लगती हैं
बेहद मज़बूत दिल है
उस सिकुड़ी सी आँखों के सीने में
कई बार नन्हे-नन्हे ख़्वाबों को
अपने आँचल में समेटते देखा है
कुछ ख़्वाब आज भी दहलीज़ के पार
इंतज़ार करते हैं
इन सिकुड़ी सी बूढ़ी आँखों में ।।
डाॅ. अनीता शाही सिंह
प्रयागराज