अंजु दास गीतांजलि
जीने की सज़ा या मरने की मैं दुआ मांगू
ढूंढे से नहीं मिलता जो उससे मैं क्या मांगू
किरदार की खुशबू से इंसान महकता है
तुझसे ऐ ख़ुदा मेरे बतला दे मैं क्या मांगू
तू बाग का माली है जो सींचता सबको है
तुझसे ऐ ख़ुदा बस मैं तेरा ही पता मांगू
जी जान से मैं तुझसे ही प्यार करुंगी अब
तुझसे हो मिलन बस इतनी सी मैं दुआ मांगू
लब हो गये पत्थर से जब सबने कहा मांगों
तेरे सिवा अंजू का अपना नहीं क्या मांगू ।
अंजु दास गीतांजलि पूर्णियां बिहार की क़लम से