सरिता त्रिपाठी
पेशे से इंजीनियर, श्री प्रवीण रामटेके जी बहुत ही सहज, सरल एवं सुलझे हुए व्यक्तित्व के थे, हमारे लिटेररी समूह के हँसमुख और ऊर्जा से ओतप्रोत रहते थे। सकरात्मकता उनमें कूट कूट के भरी थी और अपनी बातों से सभी का दिल जीत लेते थे। उनकी कविताएँ आस पास के सामाजिक तथ्यों को अपने में समाहित करती थी एवं वह खुद सामाजिक कार्यो से जुड़े हुए थे। नीलम सक्सेना जी के फेसबुक पेज पर उन्होंने बहुत सारी काव्य गोष्ठियों को संचालित किया, एकल काव्य पाठ किया एवं नीलम जी की प्रसिद्ध किताब रेड डायरी पे बुक टॉक शो भी किया था।
इस कोरोना रूपी दानव से लड़ते हुए जिंदगी हार गये और हम लोगों को निःशब्द कर गये। वह बहुत ही निश्चल हृदय वाले व्यक्ति थे और दूसरों की सहायता को हमेशा तत्पर रहते थे, इस कोरोना काल में भी उन्होंने लोगों की मदद करनी चाही पर कोरोना ने उन्हें ही हम सबसे छीन लिया। हम लेखक परिवार आशा करते हैं कि ईश्वर उनको चरणों में जगह दे और परिवार को इस विषम परिस्तिथि में दुःख सहने की क्षमता प्रदान करे। उनकी श्रद्धांजलि में मेरी कुछ पंक्तियाँ समर्पित हैं-
आना जाना जीवन का खेल
पर यूँ चले जाना कैसा खेल
नहीं हो रहा विश्वास अभी भी
बसी मुस्कुराहट करती मेल
भुला नहीं पायेंगे हर शब्द
कितने सरल सहज सुलझ
विचलित नहीं हुए कभी
विचारों पे हमेशा रहे अडिग
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश