बाल कविता
महेन्द्र सिंह राज
बारिश का मौसम अब आया
बच्चों के मन को अति भाया
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी
नानी कहती पुरा कहानी।
बच्चे होते मन के सच्चे
नटखट होते हैं पर अच्छे
छल कपट नहीं उनमें होते
थोड़ी गलती पर भी रोते।
कागज की रचते हैं नैया
जो चलती है बिना खिवैया
उसमें सवार चींटे होते
कभी लगाते जल में गोते।
सोहन मोहन कमला राधा
मिल कर खाते आधा आधा
अगर कोई करता बेमानी
दण्डित करती उनको नानी।
कभी नहीं सब बच्चे लड़ते
लड़ते तो समझोता करते
बच्चों का मन होता निर्मल
कभी नहीं बच्चे करते छल।
नानी बच्चों को समझाती
संस्कारों के पाठ पढ़ाती
बच्चों अब निज घरको जाना
समय समय से पढ़ना खाना।
बच्चों फिर हम कल मिलते हैं
सुन बच्चों के मन खिलते हैं
नानी को करके परणाम
गये बच्चे सब निज निज धाम।
महेन्द्र सिंह राज
मैढी़ चन्दौली उ. प्र.