याद

 

रेखा शाह आरबी

क्यों जीना है उन यादों संग

जो हृदय को है दुखाती

नव पथ नव आकाश गड़े

जीवन संज्ञान बताती


छूटे हाथों से घट तो

नियति रहेगी टूट

क्यों मन उद्वेलित है करना

कुछ ना कुछ जाएगा छूट


मन दुविधा से ज्यो निकलेगा

फिर से कोई राह बनेगी

उधेड़बुन और दुनियादारी

किंचित यह पहचान बनेगी  


मन का सौरभ महक उठेगा

 बूंद धरा से जो मिल जाए

मुस्कानों की बगिया में तो

चहु ओर गुलाब खिल जाए


केसर के रंग -रंग डाला

नींद और खुमारी को

सौरभ विसरित होने लगा है 

मन की सूखी क्यारी को


रेखा शाह आरबी

जिला बलिया उत्तर प्रदेश

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