हम हारें या जीते,
ये अलग बात हैl
पर कोशिश ना करना ,
ये गलत बात हैl
अंधेरों का दोष हरदम दीपक को देने वालों,
कभी देखा करो कितनी स्याह काली ये रात है।
जब रोक सकते नही जो भी होना उसे,
फिर फिक्र में उसकी क्यों रोना मुझे?
जो टूट जाओगे इस कदर मायूस हो कर अभी,
कैसे संभालोगे डगमगाते कदमों को कभी ।
रखो हौसला बुलंद अपना,
वक्त गर्दिश का हो चाहे जितना।
हंस के बाहें फैला फिर देख,
आगोश में आने को पूरी कायनत है।
रोक लो आंसुओं को आंखो में ही,
आज भी मुस्कुराने की वजहें तेरे पास है।
हम हारे या जीते,
ये अलग बात है।
पर कोशिश ना करना
ये गलत बात है।
प्रज्ञा पांडेय
वापी गुजरात
pragyapandey1975@gmail.com