बड़ा होना समंदर की, बेबसी सह लाचारी है

ऋषि तिवारी"ज्योति"

बड़ा जो खूब हो जाता,

समाज से दूर हो जाता,

कभी वो चाहकर भी फिर,

किसी से मिल नहीं पाता ।

बड़ा होकर न मिलती है,

खुशीं हो सामने फिर भी, ।

उसे तो हद में है रहना,

जमाने का नियम कहता ।


गरज लो खूब चाहे तुम,

बड़ा हो सोचकर के तुम,

नहीं तुम लौट पाओगे,

बड़ा हो हद में ही रहना ।


नदी छोटी है सागर से,

परंतु कई नगर जाती,

नीर भी कम हीं है उसकी,

स्वाद मीठा है वो पाती ।


आस नदियों से है रखता,

बड़ा अथाह सागर भी,

परंतु उसके जल को भी,

खरा नमकीन करता है ।


किनारों के हीं भीतर रह,

कर बहना जिम्मेदारी है।

बड़ा होना समंदर की,

बेबसी सह लाचारी है ।


✍️ ऋषि तिवारी"ज्योति"

चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)

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