आशा सिंह
केशव ये कैसा युद्ध छिड़ा
, तुम देखो आकर धरती पर
ना अस्त्र उठा ,ना शस्त्र उठा
इंसान इंसान भी युद्धा नहीं,
राग,द्वेष, ईर्ष्या, तकरार नहीं
ये कैसा युद्ध छिड़ा जग में,
दिखता अब कोई राह नहीं
द्रुपद सुता जब रोई थी
भरे दरबार में तुम ही आए थे
हम भी निर्दोष हैं ये माधव
कोई राह हमें अब दिखता है।
तुम आओ युद्ध विराम करो,
संकट विपदा अब तुम ही हरो ।
हे काल कराल,महाकाली,
हर विपदा को हरने वाली ।
इस बार तुम ही आ जाओ ना
इस धरती को सुंदर मधुबन,
फिर से तुम बना दो ना।
आशा सिंह
मोतिहारी पूर्वी चंपारण