अंजना झा
मान लिया मेरी गलती थी , तो तुम भी कभी अपनी गलती मान जाओ ना।
एक कदम मैं बढ़ाती हूँ, तो तुम भी तो आधे रास्ते आओ ना
यूँ तो लड़ाई- झगड़े बहुत हुआ करते हैं
पर उन झगड़ों को कभी तुम भी तो निपटाओ ना
मान लिया मेरी गलती थी , तो तुम भी कभी अपनी गलती मान जाओ ना।
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दोनों साथ चलेंगे जब ये तय किया था दोनों ने
तब क्यों तेरे-मेरे बीच तुम करो की दीवार आ जाती है।
तो ये तो तुम्हारा काम है जानू कह कर बात क्यों वहीं खत्म हो जाती है?
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रिश्तों को निभाने का बोझ क्यों सिर्फ एक ही उठायेगा?
तो कोल्हू का बैल बन क्यों सिर्फ एक ही पिसता जायेगा?
काम तो मैं भी करती हूँ ।।।
काम तो मैं भी करती हूँ ।।
तो क्यों सिर्फ ताज़ तुम्हें ही पहनाया जायेगा ।।
मान लिया मेरी गलती थी , तो तुम भी कभी अपनी गलती मान जाओ ना।
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भेद-भाव तो गैर किया करते हैं,
तुम तो अपना बन कर दूरियाँ मिटाओ ना।।
तो बनाये गये इन नियमों को
तुम खुद ही हटाओ ना।।।
मान लिया मेरी गलती थी , तो तुम भी कभी अपनी गलती मान जाओ ना।
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चलो आज एक सौदा कर लेते हैं
अपनी जिम्मेदारियों को चलो आधा- आधा कर लेते हैं।।
अपनी - अपनी गलतियों को मान
एक दूसरे का सम्मान कर लेते हैं।।।
धन्यवाद ।।