प्रेम बजाज
रण में चौकड़ीयां भरता जाता
हवा से बातें करता जाता ।
कभी पड़ा ना कोड़ा चेतक पर वो हवा
का झोंका या आसमान का घोड़ा था ।
घोड़ों पर घोड़े टूटते थे
तलवारों से तलवारें लड़ती थी ।
चिंघाड़ से हाथियों की दुश्मन
की सेना डरती - कांपती थी ।
रणभुमि में अजब भय था
हार- जीत का कुछ ना तय था ।
एक पल इधर विजय, एक पल
उधर विजय, किसी का सिर कहीं
था , किसी का धड़ कहीं था ।
राणा प्रताप , रण का ना प्यासा था
करता था रखवाली सबकी
मान- रक्त का प्यासा था ।
करता था राणा क्रीड़ा हथियारों
से धार देखने को कभी कट
जाती उंगली तलवारों से ।
भामाशाह ने पूंजी अपनी
राणा को समर्पित किया रह कर
जंगलों में छानी ख़ाक जंगलों की
घास -फूस पे निर्वाह किया माटी की
खातिर जीवन पर्यंत संघर्ष किया ।
जिस की रक्षा के लिए दी कुर्बानी पर कुर्बानी
शुरवीरों की वह चन्दन सी माटी है राजस्थानी ।
पिता उदय सिंह माता जयवंत कंवर
का था ये सपूत ऐसा जिस की मृत्यु
पर बहाए अश्क राजा अकबर जैसा
5 कन्या 17 पूत , एक पूत ने दग़ा किया
राणा की मृत्यु के बाद मेवाड़ सौंप
अकबर को दिया ।