कवि महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी की रचनाएं




"कुंडलिया"


तुलसी पत्ता डालकर, पी लो साथी चाय।

अजवाइन अदरक तनिक, खूब उबालो भाय।

खूब उबालो भाय, पिलाओ सारे जग को।

साफ करो नित हाथ, रगड़ कर धोना मग को।

कह गौतम कविराज, वायरस इनसे झुलसी।

कुछ भी बचा न शेष, लिख गए सब कुछ तुलसी।।


"गौ सेवा, सर्व गुणकारी"

गैया मेरी नंदिनी, बरसाती है दूध।

बछिया गौरी नाम की, बिन लागत की सूद।

बिन लागत की सूद, कूद कर खेला करती।

दरवाजे की शान, सभी के दिल में रहती।

गौतम गुण की खान, मान से रख गौ मैया।

घर होता खुशहाल, जहाँ रंभाए गैया।।


महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी

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