ग़ज़ल

  

डाॅ शाहिदा

अजब सा है अब महफ़िल का चलन,

वह बस रूठा रहे और, हम मनाते रहे।



जो हम पे है गुज़री वो उसको क्या जाने,

 दास्ताँ अपने दिल की, हम सुनाते रहे।


आग का दरिया है जिन्दगी का सफ़र,

काग़ज़ की नाव पानी में, हम बहाते रहे।


धोखा, फ़रेब, हमको रोज़ मिलता रहा,

आँखों में अश्क लिये,हम मुस्कुराते रहे।


जहाँ के दर्द से जो अनजान है अब तक,

प्यार का सबक़ उसे , हम सिखाते रहे ।


शब भर दीवारों से गुफ़त्गू करके ' शाहिद ',

थपकियों से अरमानो को, हम सुलाते रहे।



Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
सफेद दूब-
Image
ठाकुर  की रखैल
Image
गीता का ज्ञान
Image