पकने लगे है कान ,प्रदूषण बढ़ा घोर है।
होते ह्रदयाघात व्याधियाँ चहूँ ओर है।
रोग मिटाती राग रागिनी, नही दीखती।
इक्कीस सदि की पीढ़ी,तो अब पाॅप सीखती।।१।।
लगा नही इक पेड़ मगर कितने ही काटे।
हुई दूरियाँ खूब, कौन इसको अब पाटे।
परदूषण से श्वास , घर घर फेले।
सब्जी फल खाद्यान्न,मिले हमको है मेले ।।२।।
निज स्वार्थ को त्याग, भलाई जग की करले।
त्याग सर्पण दया, ह्रदय मे मानव धरले।
बचा प्रकृति वरना नही बच पायेगा।
घर घर रोगी स्वस्थ तभी हो पायेगा।।३
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🌷देवकी दर्पण🌷✍
काव्य कुंज रोटेदा जिला बून्दी( राज.) पिन 323301 मो. वार्सप 9799115517.