विनोद कुमार पांडेय
गुजरे वक्त की
बरबस आती है याद,
अपेक्षाओं के खातिर
करना फरियाद,
बार बार बोलना,
करना प्यार का इजहार,
गले से लिपटना और कहना,
अब फिर न होगा तकरार
अब तो औपचारिकताओं से
सजा है प्रेम का बाजार
इरादा है पैसे से खरीदना प्यार
रिश्तों में अब होने लगी मिलावट
अंदर की सफाई बंद है
बाहर है सजावट
टूटने लगे रिश्तों के ताने बाने
बिरले ही रिश्तों के मर्म को जानें।
विनोद कुमार पांडेय
शिक्षक (रा० हाई स्कूल, लिब्बरहेड़ी, हरिद्वार)