अंजु कुमारी दास गीतांजलि
जिसे देखिये बस बदन ताकता है।
हुनर को जरा भी नहीं आँकता है।
शराफत का चोला पहनकर वो घूमे
खुली खिड़कियाँ देख जो झाँकता है।
घुमाकर फिराकर करे बात हर दम
समझ से परे हूं वो क्या चाहता है।
कदम मैं बढाऊँ तो कैसे बढाऊँ
बड़ी गंदी नज़रों से वो ताड़ता है।
लिखी है जलालत यूँ अंजू के हाथों
मेरे ओहदे वो नहीं जानता है।
अंजु कुमारी दास गीतांजलि
शिक्षिका
पूर्णियां बिहार।