समीर द्विवेदी नितान्त
माना कि साथ चल न सका कारवान के ।।
लेकिन ये मत समझ कि मेरे पाँव थक गए..।।
दिलकश मकाम राह में मिलते रहे मगर...
जारी रखा सफर न किसी तौर हम रूके..।।
मारा है किसने पीठ में खंजर नहीं पता...
सब दोस्त कह रहे हैं कि ऐ दोस्त हम न थे..।।
हैरान हैं वो कैसे सफर मैंने तय किया...
राहों में मेरी खार जिन्होंने बिछाए थे..।।
आसाँ नहीं है राहे वफा आजकल नितान्त...
हम खूब जानते थे मगर फिर भी चल पडे..।।
समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज... उत्तर प्रदेश