दिव्य रत्न

 



 दिव्य रत्न को पाना है तो ,मंथन करना होगा,

चिंतन रूपी रस्सी से फिर ,सागर मथना होगा ।


आज देश में भरा हलाहल, जीवन है निष्प्राण,

करने आओ मानवता का, हे शिव तुम कल्याण,

अथक प्रयास किए हैं हमने ,पर हम हैं लाचार,

आज तुम्हें ही धरा पर आकर ,संकट हरना होगा ।


विष को पीकर तुमको ही, संताप मिटाना होगा,

प्रजा बुलाती है तुमको, कैलाश से आना होगा,

गरल की लपटें ऐसी फैली, रूप धरे विकराल,

नीलकंठ इस विष को तुमको, कंठ पर धरना होगा ।


स्मिता पांडेय

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