लड़खड़ाता ज़मीर
डगमगाता ईमान
और कितना गिरेगा ए इंसान
इंसानियत की बैसाखी पकड़
ख़ुदा का ख़ौफ़ कर
उसकी बे आवाज़ लाठी से डर
उस ख़ामोश चीख की आवाज़ सुन
उस के आँसुओं को गिन
तेरा भी फ़ैसला होगा क़यामत के दिन
उसके गहरे ज़ख़्म
उसकी सिसकती मजबूरी
याद रहे की भर गई है तेरे जुर्म की तिजोरी .......
निवेदिता रॉय (बहरीन)