कवि अतुल पाठक धैर्य की रचनाएं

 


असमानता का चश्मा

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असमानता का चश्मा जब तक अपनी समझ से न हटा पाओगे,

तब तक न अपने समाज को सुंदर और न अपने देश को मेरा भारत महान बना पाओगे।


जहां बेटियों और महिलाओं को समान दर्जा न दिला पाओगे,

वहां कभी सशक्त समाज की कल्पना भी न कर पाओगे।


आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कतई कमतर नहीं फिर भी अगर बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर न दे पाओगे,

तो याद रखना समाज में कभी सही मायने में विकास न कर पाओगे।

गुज़रे हुए लम्हे

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मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका जब करीब से देखा था,

हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था।


गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते,

पर यादों का कारवाँ होंठों पे हँसी मुस्कान ज़रूर ले आता है।


वो ख़ुशनुमा पल कैसे भूल सकता मैं,

उसके मीठे अल्फ़ाज़ और जादूई मुस्कान को आज भी याद करता मैं।


ज़िन्दगी को सही मायने में जीने के लिए ज़िन्दादिल होना बेहद ज़रूरी है,

दो पल की ज़िन्दगी है इसे यादगार बनाना ज़रूरी है।


खुद को कहीं गुम न होने देना,

खुद को अपनेआप में तलाशना भी ज़रूरी है।


लिहाज़

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थोड़ी सी लिहाज़ रक्खा तो करो,

बूढ़े मां बाप को अपने ज़रा देखा तो करो।


जिन्होंने ख़ुद की ख़ुशियाँ त्याग दी हों तुम्हें कामयाब बनाने में,

उनकी थोड़ी परवाह किया तो करो।


कभी सोचा है माँ बाप के आत्मसमान को कितनी चोट पहुँचती होगी,

जब अपने ही बच्चे उनको दर-दर की ठोकरें खाने पे मजबूर करते हों।


उस वक्त  माँ बाप भी ख़ुदा से यही कहते होंगे,

 कि ये दिन दिखाने के लिए कभी ऐसी औलाद दिया न करो।


बागबान जैसी फिल्म बनाई न जाती,

गर आज के दौर में ग़ैरत से भी बदतर संतान पाई न जाती।


रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "

पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)

मौलिक/स्वरचित रचना

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