आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
परिस्थिति विकट है और चहुओर संकट है,
पर समाधान भी तो हम ही निकलवाएं,
साथ और संबलता से फिर सफलता लाएं,
स्वंय सभी आत्मशक्ति को जागृत कर जाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं,
हमारे भगवान हमारे अन्दर जब तक भक्ति है,
हम जीवित हैं यहाँ जब तक आत्मशक्ति है,
गएं उनको श्रद्धांजलि यादों का विष पी जाएं,
बचें उन्हें भविष्य में आगे बढ़ाकर जी जाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं,
घोर तम का अंधेरा है तो क्या छट जाएगा,
सुखद हर्षित सवेरा यहां अवश्य आएगा,
हम मानव हैं हम हीं जीते हैं हम हीं जितेंगे,
नित्य यही सबके हृदय में विश्वास जगाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
लड़ेंगे भी जितेंगे खुश होंगे और जीएंगे भी,
आरोग्यता का अमृत हम फिर से पिएंगे भी,
आती ही हैं समस्याएं परीक्षा लेने को आएं,
उतीर्ण हम ही होंगें की सकारात्मकता फैलाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
साथ न छोड़ें इस कुसमय में एक दूसरे का,
अकेलापन से न तोड़ें हृदय एक दूसरे का,
मैं नहीं 'हम' हैं तभी ये संचालित सृष्टि हैं,
इसका नित्य प्रतिपल प्रतिक्षण भान कराएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
अपनो को सहयोग साथ और समर्पण करें,
और समाज के लिए भी स्वयं को अर्पण करें,
भय और आशंका से समाज को मुक्त कराएं,
चलो फिर मानवतारथ के हम सारथी बन जाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
🙏🏻🙏🏻
ममता रानी सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखंड)
(स्वरचित मौलिक रचना)