बच्चे जंगलों में बस गए।

 

सुनीता द्विवेदी

चिड़िया फिर मेरी छत पर ,

घौंसला बना रही है !

नया सपना लिख मेरी छत पर,

फिर हौंसला  बढ़ा रही है!


दिन भर ढूंढती तेरी मेरी छत पर,

तिनका एक एक ला रही है !

ऊंची जगह ढूंढ़ी ,मेरी छत पर,

बिल्लियों से अंडे बचा रही है!

ढ़के बैठी पंखों से, मेरी छत पर,

सर्दी गर्मी बारिश से बचा रही है!

चहचहा उठा घौंसला मेरी छत पर,

चिड़िया दाना ला रही है!

नन्हे नन्हे 'पर' फुदक रहे मेरी छत पर,

चिड़िया उड़ना सीखा रही है!

बहुत शांति है "फिर "मेरी छत पर,

चिड़िया बार बार आ जा रही है !!

मैंने पूछा फिर मेरी छत पर!

चिड़िया क्यों आंसू बहा रही है?

सुन चिड़िया!!!!

घौंसले खाली पड़े हैं!

अंडे तुम्हारे उड़ गए!

अब चिड़िया क्या खोजती हो !

परिंदों के पर बढ़ गए !!

बच्चे जंगलों में उड़ गए!!!

बच्चे जंगलों में बस गए!!

स्वरचित :©️सुनीता द्विवेदी

कानपुर उत्तर प्रदेश

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