मनु प्रताप सिंह
चम्बल निर्झरिणी बहती कलकल,करती धरा को रूपवती।
मध्यभारत को पोषित करती,जीवनरेखा चर्मण्यवती।
मध्यप्रदेश और रायथान की,
यह है रेखा विभाजक।
बनास-बामनी-परवनआदि ,
हैं चम्बल की संयोजक।
प्यासी वसुधा को तृप्त कर,
भजती वह चम्बल महिमा।
निर्मित जलसेतु से सींचकर,
चम्बल प्रसारित हरितिमा।।
मुड़ती-घूमती-संगम बनाकर,
करती मोहित भाव भंगिमा।
आभूषित मंजुल से चंबल,,
सम्पूर्ण आपगा की गरिमा।
कटाव भूमि को करके चंबल,
बनाती है स्थान निर्जन।
जगप्रसिद्ध हैं यह बग़ावत की,
बसते यहाँ दस्यु दुर्जन।
नित्य प्रवाहित जलधारा से,रहेगी चम्बल सौभाग्यवती।
मध्यभारत को पोषित करती,जीवनरेखा चर्मण्यवती।
● मनु प्रताप सिंह
चींचडौली (काव्यमित्र)