माना कलम मेरी
रुक सकती है
क्या अभिव्यक्ति मेरी
तुम रोक सकोगे
कुछ क्षणिक ये है अन्धेरा
क्या कल का उगता सूरज
तुम रोक सकोगे
घनघोर उमड़ते
अन्तस के बादल
क्या भावों की धारा
तुम रोक सकोगे
क़लम मेरी रुक सकती
क्या अभिव्यक्ति मेरी तुम
रोक सकोगे
उड़ते पंछी छाते बादल
क्या पावस की बूंदें
तुम रोक सकोगे
तूफानी और झंझावात का
क्या झोंका तुम रोक सकोगे
वेगों में बहती धारायें हो
क्या प्रवाह तुम रोक सकोगे
अन्तस में बहती पीड़ा हो
क्या अश्रु प्रवाह
तुम रोक सकोगे
कलम मेरी रुक सकती है
क्या अभिव्यक्ति मेरी
तुम रोक सकोगे
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक-------(हरदोई)
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