जीवन की जंग

रेखा शाह आरबी

तलवारों के नोक पर 

जिंदगी की धार है 

पग विधे है कंटक से

जीवन जीवन पर भार है


होता दैत्य मनुज में

भीषण तम संहार है

ममता पंख तले छुपाती

जहां न मृत्यु प्रहार है


व्यर्थ रहा रुकना छुप ना

कितने होते दफन हैं

मासूम आंखों के सपने

छुपा लिए कफन है


कौन आएगा लड़ने

यह तो अपनी लड़ाई है

सत्ता के सिर पर

लिप्सा की खुमारी छाई है


कुछ दिन और तो रुकिए

किला फ़तेह बाकी है

लाखों से पटती धरती की

अभी तो बाकी झांकी है


ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं

जिसमें खुद ही खुद के शत्रु है

अगर नहीं संभले तो

आंखों में रहेंगे अश्रु हैं


रेखा शाह आरबी

जिला बलिया उत्तर प्रदेश

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