तन पर लगी चोट भर जाएगी,
पर मन को चोटिल मत कर।
जीवन की खुशहाली पर ,
बदहाली का लेपन मत कर।
करना है प्रहार कुटिलता पर,
जी भरकर वार करो उस पर।
पर जब चोटिल हो मानवता,
तब दानवता का व्यवहार मत कर।
सच कड़वा ही क्यों बोलें?
समरसता का अमृत घोलें।
हरी-भरी, मखमली कामना,
के मन पर वज्रपात मत कर।
कलुषित विचार का त्याग करें,
अभिषप्त जीवन का उद्धार करें।
छोटी-छोटी खुशियों को आने से,
खिड़की के सुराख बन्द मत कर।
अंजुरी से ही छनकर धूप जोआए,
मन पर लगी फफूंदी को मुरझाए।
अन्धकार के सीने पर प्रहार तू कर,
पर विवशता की लाचारी पर मत हंस।
थोड़ी सी खुशी की रोली ललाट पर,
थोड़ी सी मुस्कान होंठों पर आने दे।
गुलाल सजे गालों पर निर्विकार भावों का,
जीवन की निश्छलता पर अट्टहास मत कर।
अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०
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