राकेश चन्द्रा
जंगल में रहती है वनदेवी
जो स्वीकार करती है किसी कबीले, समुदाय या
गाँव के राजा की प्रार्थना,
अपने राज्य की, प्रजा की और अपनी सुरक्षा
के लिये देता है जो पशुबलि
जंगल की अस्मिता अक्षुण्ण रहे, इसके लिये
एक तिनका भी कोई उठा नहीं सकता,
ले जा नहीं सकता जंगल के बाहर-ऐसा
वनदेवी का आदेश है, नियम
तोड़ने वाले कठोर दंड के बन जाते हैं स्वतः पात्र;
जंगल में होती हैं पगडंडियॉ
एक बार जो रास्ता भटक जाए
ले लेता है जंगल उसे
अपनी गिरफ्त में;
जंगल में रहते हैं जंगली जानवर,
कीड़े-मकौड़े, नाना प्रकार के पक्षी
और यदा-कदा नरभक्षी पेड़,
पड़ जाते हैं सामने
महाकाल के वेश में एकदम
अचानक;
जंगल में घूमते जब खत्म हो जाए
पास का बोतल का पानी,
शेष रह जाता है सिर्फ
आँखों में पानी,
जंगल में होते हैं कहीं-कहीं जल संगृहण क्षेत्र
पर लगते हैं पहुँच से बहुत दूर,
ऐसे क्षणों में;
जंगल में आती हैं आवाजें तरह-तरह की
जरूरी नहीं कि सब कर्ण-मधुर हो,
कभी-कभी तो कीटों और पक्षियों द्वारा निःसृत
ध्वनियाँ भी दहला जाती हैं
हैं वज्र-जैसे शरीर को;
जंगल में होता है भतिभ्रम विशेषतयः
रात्रि मे, जब पेड़ों की टहनियाँ
धारण कर लेती हैं भाँति-भाँति के रूप
जैसे दिखायी पड़ते हैं किसी
भयावह दिवास्वप्न में;
जंगल के बाहर से दिखायी पड़ते हैं
सभी पेड़, मानो खड़े हों एक अनुशासन में पंक्तिबद्ध,
निर्विकार, हरे-भरे,
सुनाई पड़ता है सुमधुर संगीत जंगल से
आने वाली मंद-मंद हवाओं का,
पक्षियों का कलख भी कभी-कभी सुहाता है
जंगल के बाहर से और
जंगली जानवरों की डरावनी आवाजें
भी अहसास कराती हैं
सुरक्षित होने का महाकाल की गिरफ्त से
जंगल के बाहर से;
चलो जंगल को छोड़ दें अपने हाल पर,
मुक्त कर दें अपनी अवांछित छेड-छाड़ से,
हमारे लिये प्रतीक्षारत हैं
खुद बसाये हुए गाँव, नगर, शहर और देश,
बरसायें इनमें खुशियों के अनगिनत मुक्ताकण
और लहरायें सब मिलकर
अजर-अमर जीवन संगीत,
(शिलांग के एक वन क्षेत्र ‘‘सैक्रेड फोरेसट’’ पर आधारित)
राकेश चन्द्रा
610/60, केशव नगर कालोनी
सीतापुर रोड, लखनऊ उत्तर-प्रदेश-226020