स्नेहलता पाण्डेय"स्नेह"
वह एक बहुत नटखट लड़की थी।
हरदम खिलखिलाती रहती थी। उसे सब मुनिया कहकर बुलाते थे। मेरे घर रोज ही आती थी।
कभी भाभी के सिर में तेल लगा दिया तो कभी माँ के कहने पर दुकान से जाकर उनके लिए तमाकू खरीद कर ले आई। इस तरह वह घर के छोटे-मोटे काम कर दिया करती थी और हम भाई बहनों के साथ काफी घुल मिल गई थी। वह ज्यादा देर रूकती नहीं थी काम किया और फिर खा पीकर चली जाती थी।
आज वह माँ के लिए बनारसी पान लेकर आई थी आते ही बोली- "अम्मा यह पान में आपके लिए लेकर आई हूं।"
माँ ने कहा -"मुनिया तेरे पास पैसे कहां से आए ?"
वह बोली "कल भाभी ने मुझे दिए थे वह मैंने बचा कर रखा था ।
तभी बड़े भैया अपनी दुकान से आए। उन्होंने उसे देखते कहा -"" मुनिया तेरे पैर में चक्र लगा हुआ है क्या?
अभी तो तू वहां नुक्कड़ पर घूम रही थी इतनी जल्दी घर भी पहुंच गई।
वह हंसने लगी।
मेरे घर से कुछ मकान छोड़कर उसका घर था।
उसकी मां भी बहुत अच्छे स्वभाव की थीं।
हम उन्हें चाची कहते थे । चाची के पति नहीं थे तीन बच्चे थे मुनिया सबसे छोटी थी। बड़ा बेटा छोटी-मोटी नौकरी करता था और चाची घरों में सिलाई बुनाई सिलाई करके घर खर्च चलाती थी । सभी लोग उनका बहुत सम्मान करते थे । किसी के घर शादी ब्याह का समारोह होता था तो लोग चाची को जरूर बुलाते थे । चाची और मुनिया जी जान से काम में लग जाते थे।
अचानक महामारी की चपेट में चाची और बड़े भैया उनके बड़े बेटे काल के ग्रास बन गए। उनका छोटा बेटा लुधियाना में कहीं छोटी-मोटी नौकरी करता था ।
उस समय वह मां के दर्शन के लिए भी नहीं आ सका ।
अब मुनिया घर में अकेली रह गई हम लोग उसे बुलाकर खाना पीना खिला देते थे ।
मां ने उसके लिए कुछ जोड़ी कपड़े भी बनवा दिए ।
मुनिया अब कम आने लगी।
मैंने पूछा -"मुनिया अब क्यों नहीं आती है ?
कहने लगी- "" दीदी मां के बिना मुझे कहीं अच्छा नहीं लगता है मुझे घर में मां का एहसास होता है इसलिए मैं अब घर से ज्यादा नहीं निकलती हूँ।
भाई थोड़े बहुत पैसे भेज देता है जिससे मेरा काम चल जाता है ।
हम लोग भी अपनी पढ़ाई लिखाई में व्यस्त हो गए थे।
कुछ दिन बाद मुनिया आई ।
भाभी ने कहा-"मुनिया बहुत दिन बाद आई।
सब ठीक है न ?
हाँ भाभी मैं कल भैया के साथ लुधियाना जा रही हूँ । भाई ने विवाह कर लिया है, भाभी वहीं पर है।
हम लोग खुश हो गए कि अब भाभी के साथ इसका मन लग जायेगा।
इस बात को कई महीने हो चुके थे।
एक दिन सुबह-सुबह मैं टेलीविजन खोल कर बैठी थी कि मैंने देखा खबर चल रही थी कि लुधियाना में ठगों का समूह पकड़ा गया है । उनके चित्र भी दिखा रहे थे ताकि लोग सावधान हो जाएं।
एक लड़की की तस्वीर मुनिया जैसी लग रही थी साथ में उसका भाई भी था ।
नीचे पूरा समाचार लिखा हुआ था कि ये लोग लुधियाना में लोगों को तरह-तरह के जाल में फंसा कर ठग रहे थे ।
इनका पूरा रैकेट था और मुनिया का भाई इसी काम के लिए उसे अपने साथ ले गया था।
मेरी आंखों के सामने चाची की तस्वीर आ गई।
जो चाची स्वाभिमान के साथ मेहनत करके अपना जीवन यापन करना पसंद कर करती थीं, उनका बेटा लोगों को ठग और लूट कर अपना जीवन यापन कर रहा था और उसने सगी अपनी बहन को भी इस काम में शामिल कर लिया था।
मुझे मुनिया के लिए बहुत दुख हो रहा था।
स्नेहलता पाण्डेय"स्नेह"
नई दिल्ली