सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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कानों में मधु तेरी आवाज आ गई,
मरते हुए की जान में जान आ गई।
कोरोना ने बंद करवाई मुलाकाते,
जीवन मे तब से अवसाद आ गई।
तरस गए हम मिसरी से बोलो को,
सुनते ही मुख पर मुस्कान आ गई।
ना जाने कब होगी खुल कर बातें,
बैठे बैठे घर में जैसे विषाद आ गई।
चौतरफा लग गई बहुत सी बंदिशें,
खिली हुई फसलों में लाग आ गई।
कभी तो बहाल होंगे बिगड़े हालात,
दुनिया हरकतों से है बाज आ गई।
मनसीरत कुदरत से ही हैं उम्मीदें,
तब समझेंगे हम वो बहार आ गई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)