ग़ज़ल

  

इंदु मिश्रा'किरण

आज के दौर की हक़ीक़त है,

हर बशर को लुभाती दौलत है।


प्यार से बात हम करें किससे,

सबकी गुफ़्तार में सियासत है।


है नहीं चाह इशरतों का मुझे,

दर्द ही अब तो अपनी क़िस्मत है।


मेरे रहबर दिखा दो राह मुझे,

आदमी ने बदल ली फ़ितरत है।


ऐ 'किरण' आज जी लो जी भर के,

अब बदलने लगी ये क़ुदरत है।

     

 इंदु मिश्रा'किरण'

नई दिल्ली

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