सुख दुःख है जीवन में ऐसे
जैसे होते धूप और छांव
कभी मिलती मरहम ख़ुशियों की
तो कभी ग़मों के मिलते घाव
पर न घबराना बन्दे तू भले कड़ी धूप जलना पड़े
पाएगा फल अपने परिश्रम का जैसे स्वर्ण चमकता है तप के
धूप देती एहसास हमें दिवस का, कहती अभी निशा में है कुछ पल
कर्म पथ पर रह अडिग तू प्रकाश में बस चलता चल
अंधियारे के होने पर विश्राम तुझे करना ही है
संघर्षों से ना घबरा गर लक्ष को हासिल करना है
जैसे धूप और छांव ना बस में दिवस के इनको तो आना ही है
सुख दुःख भी बस ऐसे ही,बस हमें इन्हे अपनाना है
जैसे धूप में जल कर छांव की एहमियत हमने पता चलती
बस दुःख और संघर्षो से ही तो जीवन में सुखों की अभिलाषा आती
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
9926179870