अनीता मिश्रा सिद्धि
भावों के सुमन कैसे मैं अर्पण कंरू ,
आँखे खोली तुझको देखा ,
प्यार तेरे आंचल में पाया ,
जीवन के हर मोड़ पर ,
तू बनी ममता का साया ।
बचपन में हाथ पकड़कर ,
यौवन में बात समझकर ,
जीवन पथ आलोकित किया।
मेरी लेखनी सक्षम नहीं,
जो तेरा गुणगान लिखे,
कागज ऐसी कोई नहीं जो छाप सके तेरी महिमा ,
मैं नादान क्या सार लिखूं।
माँ मेरे हर दर्द को छू कर ,
मरहम कर देती हो ,
धूप भरी राह को शबनम कर देती हो।
बस यही आशिष देना ,
तेरा हाथ सदा मेरे सिर पर रहे ,
हर-जन्म तू जननी मेरी ही बन कर मिले।
अनीता मिश्रा सिद्धि।
पटना ।