कीर्ति, दीप्ति सब धूमिल
मृत्यु डोल रही है
भस्मासुर सा हाथ लिए
मुख सुरसा सा खोल रही है!!
पड़े चरणों में आविष्कार
वक्त ने बता दिया है
मनुज,,क्या है तेरा विस्तार
प्रकृति ने जता दिया है!!
दिवा- रात्रि मृत्यु का तांडव नर्तन
आज जग झेल रहा है!!
जयघोषों का ,आर्तनाद में परिवर्तन
आज जग देख रहा है!!
महानाश के सूत्रधार मत बनो
जियो और जीने दो
प्रकृति तत्वों का अमिय सुधा घट
सबका है, सबको पीने दो!!
रश्मि मिश्रा 'रश्मि'
भोपाल