डॕा शाहिदा
हौसला बाक़ी नहीं दिल ग़म से चूर है,
हम तो लाचार हैं पर तू नहीं मजबूर है |
छोटे छोटे दूध पीते बच्चों को देखो,
इनके सर से तो माँ का साया भी दूर है |
बूढ़े बाप के कांधे पे बेटे की लाश,
देखा नहीं जाता पर देखा ज़रूर है |
वो लाशें जिन्हें अपनो के कांधे न मिले,
तेरी रज़ा है तो हमें देखना मंज़ूर है |
कल आई थी घर,जो बन के दुल्हन,
आज विधवा हो गयी,क्या यही दस्तूर है |
हर तरफ़ मातम ही मातम है यहाँ,
जो तुम्हें मंज़ूर है, वो हमे मंज़ूर है |
मेरे मौला ये मंज़र तुम भी देखते होगे,
हर ख़ुशी हर ग़म हरआँसू में तेरा ज़हूर है |
उजड़े गुलशन को फुलवारी बना दो मालिक,
मेरे लहू की एक एक बूँद तेरी मशकूर है |