कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
पति मिल जाये मिलता नवजीवन, जीवन का श्रंगार है
ऐसी सोच ने दिया जन्म सतीप्रथा को जो एक अभिशाप है
ऐसी ------------------------------------------------
कहीं दूर एक चीख सुनाई, हुई विधवा विधि को दया न आई
जबरन जिन्दा जलाया जायेगा, बच्चा दूध बिना न रह पायेगा
आग क़ी लपटों में लिपटूंगी, करुँगी उसका सोलह श्रंगार है
ऐसी --------------------------------------------------
काश कोई देव मनुज आता, लेता मेरे हाथों को थाम
करता विरोध इस कुप्रथा का, कहता ये बहुत बड़ा महापाप
बिन इच्छा के मैं जलूँगी, कहती अबला ये ही मेरा दुर्भाग्य है
ऐसी ______________________________________
राजाराम मोहन राय देख दशा भाभी क़ी सह न पाए
आँखों में थे ,अश्रु, आत्म हीन होती स्त्री ये कह न पाए
सतीप्रथा का अंत किया, कोटि कोटि नमन उन्हें बारम्बार है
ऐसी ______________________________________
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कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "उत्तरप्रदेश