प्रभुदयाल तिवारी
हर एक मुश्किल में तपाके खुद को
वो जैसे कुंदन बना रही है
नदी के जैसे बनाके रास्ता
मुकाम अपना वो पा रही है ।।
ना माता-पिता पर बोझ है अब वो
हुआ उलट है अब इसके बिल्कुल
सहारा बन के माँ-बाप का
वो बोझ सबका उठा रही है
नहीं इरादा कोई भी ऐसा
जहां न उसने हुनर दिखाया।
जमीं से लेकर आसमां तक
कमाल वो अपना दिखा रही है।।
वो घर के देहरी में न कैद दासी
थी आँसुओं से भरी जो बदरी
खड़ी सफलता की मंजिलों में
वो शान से मुस्कुरा रही है।।
सुनीता विलियम्स या कल्पना हो
गगन पे उसका है नाम अंकित
वो मैत्रेयी और गार्गी का ही
काम आगे बढा रही है।।
हवाई सेना की जंगजू हो
वो चाहे कोबरा कमांडो
नहीं है कम किसी से भी अब
वो दुनिया को ये बता रही है।।
वजूद उसका फकत बदन तक
जो सोचते है गलत है कितना
मदर टेरेसा सी संत बन के
वो रुह को जगमगा रही है।।
न है वो अबला न ही बेचारी
नये उजालों का दौर है वो
बराबरी के तमाम दर्जे
वो अपनी मेहनत से पा रही है।।
वो शान से मुस्कुरा रही हैं
वो शान से मुस्कुरा रही हैं।।