बचपन

 


स्मिता पांडेय

फिर से बचपन लौट आए गर,जीना उसे सिखाऊँ,

अनुभव की लाठी देकर मैं,चलना उसे सिखाऊँ,


मूल्य खो रहे रिश्तों में,जीवन जीना है मुश्किल,

हर इँसां में छिपा हुआ इक,खंज़र तुझे दिखाऊँ ।


चले बिना न मिलती मंज़िल,कदम बढ़ाना पड़ता,

पथ की बाधाओं से लड़ना,तुझको मैं सिखलाऊँ ।


जीवन रुपी पथ पर भी तुम,बिल्कुल न घबराना,

तुझे लक्ष्य तक पहुँचाने में,सही दिशा दिखलाऊँ

स्वरचित 

स्मिता पांडेय

लखनऊ

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