एक दिन पुनः लौटेगी धरा अपने स्वरूप में
शायद तब तक न हो जीवित कोई रस्म दहेज की
न विदा होगी कोई बेटी दहलीज से
न पढ़ाई होगी न लिखाई होगी
न कोई धर्मो का विवाद होगा।
न राजनीति का कोई निशां होगा
न व्यापार होगा न समाचार होगा
न चोरी होगा ज्ञान सामाजिक कुरीतियों का
न होगा कोई वृद्धाश्रम
न प्रदूषण का कोई रोग होगा।
हवा विचरण करेगी करेगी स्वतंत्र
चिड़िया मधुर गीत सुनायेगी
जंगल में मंगल होगा
क्योंकि विदा हो चुकी होगी
मानव जाति संसार से
बिना अवशेष के।
ललिता पाण्डेय
दिल्ली