‘‘“मैंने सुना है आप लिखते हैं, साहित्यकार हैं ।’’
‘‘“ठीक सुना है आपने।’’
‘‘“फिर तो आपने आतंकवादियों पर भी कुछ लिखा होगा ?’’
‘‘“हॉं, क्यों नहीं । सम्भवतः सभी साहित्यकारों ने उस पर लिखा ही होगा ।’’
‘‘“क्या मैं देख सकता हूं A**
‘‘^^हॉं-हॉं लीजिये।’’
‘‘“........... आपने इसमें कहीं भी आतंकवादियों के विरूद्ध कुछ नहीं कहा है ।’’
‘‘“मेरी कविताएं वीर रस की हैं] मैंने अपने सैनिकों में जोश भरने की कोशिश की है ।’’
‘‘“वो तो ठीक है] लेकिन आतंक की तो निन्दा..................’’
‘‘“देखिये] मैं किसी कन्ट्रोवर्सी में नहीं पड़ना चाहता ।’’
‘‘“कन्ट्रोवर्सी !!! अरे गलत को गलत कहने में क्या बुराई हैA
‘‘“गलत सही का निर्णय करने वाले हम कौन होते हैं\+**
‘‘“फिर कौन करेगा] यह निर्णय\**
‘‘“सरकार] सरकार है न इसके लिये ।’’
‘‘“यह तो साहब जिम्मेदारी से पलायन है ।’’
‘‘“देखिये महोदय] आपके पास शायद समय फालतू है । लेकिन मुझे बहुत काम करना है । कृपया.................’’
‘‘“क्षमा कीजियेगा । मैं भुल गया था कि आप साहित्यकार हैं । समाज के प्रति आपकी बहुत सी जिम्मेदारियॉं हैं] फिर मेरी फालतू बातों के लिये आपके पास समय कहॉं होगा । चलता हूं] प्रणाम ।’’
नीलम राकेश
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उत्तर-प्रदेश-226020,
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