मन्शा शुक्ला
करजोड़ करूँ विनती गुरुवर
प्रभु अरज मेरीअब सुन लीजै
तेरे चरण कमल है ठौर मेरा
प्रभु चरण शरण मोहें दीजै
कर जोड़ करूँ विनती गुरुवर
प्रभु अरज मेरी अब सुन लीजै।
पदकमल की रज लगा माँथे
तेरी महिमा का गुणगान करूँ
बस एक भरोसा तेरा प्रभु
आशीष से झोली भर दीजै
करजोड़ कँरू विनती गुरुवर
प्रभु अरज मेरी अब सुन लीजै।
मोह माया तृष्णा जग की हमें
पग पग पर पथ भरमाती है
है विदित की यह तन नश्वर है
पाश मोह का बाँधती है
मिट जायें मोह तमस मन का
प्रभु कृपा दृष्टि हम पर कीजै
कर जोड़ करूँ विनती गुरुवर
प्रभु अरज मेरी अब सुन लीजै।
हैं सिन्धु अगाध यह जग सारा
जर्जर नैया यह मानव काया
भोग विलास के भँवर बीच
जीवन नैया डगमग डोलें
पतवार तुम्हीं आधार तुम्हीं
मेरी नैया पार लगा दीजै
कर जोड़ करूँ विनती गुरुवर
प्रभु अरज मेरी अब सुन लीजै।
हैं भक्ति शक्ति नही मुझमें
अर्चन वन्दन नही जानती हूँ
अज्ञान मलीन है अन्तस् उर
मन मुकुर दरश नही पाती
हे दिव्य आलोकित ज्ञानपुंज
मन के अंधकार मिटा दीजै
करजोड़ करूँ विनती गुरुवर
प्रभु अरज मेरी अब सुन लीजै
कर जोड़.........................
प्रभु अरज.......................।।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर