गोविन्द कुमार गुप्ता
आओ चलते दूर बहुत ,
पिछली यादों के साथ,
वो चूल्हे बाली रोटी
अम्मा के बनाते हाँथ,
वो नमक था मिर्ची बाला,
सरसो के तेल के साथ,
वो चूल्हे वाली रोटी
अम्मा के बनाते हाँथ,।।
वो छोटी सी दीवार ,
हम देखे आर ओर पार,
सबसे लेते थे हाल,
करते थे खूब धमाल,
सावन में झूले झूले,
भाई बहनों के साथ,,
वो चूल्हे वाली रोटी ,
अम्मा के बनाते हाँथ,
आओ चलते है दूर बहुत,
पिछली यादों के साथ,
जब गाय थी कोई आती,
मिलती थी पहली रोटी,
कोई घर कोई कुत्ता आता,
मिलती थी अंतिम रोटी,
कौआ जब करता कांव कांव,
उस ओर भी बढ़ता हाँथ,।।
आओ चलते है दूर बहुत,
पिछली यादों के साथ,
वो चूल्हे बाली रोटी,
अम्मा के बनाते हाँथ,।।
गर्मी की छुट्टियां होती,
नानी की याद सताती,
जल्दी से तुम सब आओ,
नानी की चिठ्ठी आती,
मामा को भेज रही हूं,
आ जाओ उनके साथ,,
वो चूल्हे वाली रोटी,
अम्मा के बनाते हाँथ,
आओ चलते है दूर बहुत,
पिछली यादों के साथ,
साथ साथ सब लेटे,
सब कहते सुनते थे,
रातो में तारे गिन,
सपनो को बुनते थे,
लेटे लेटे सो जाते
पकड़े पकड़े ही हाँथ,
आओ चलते है दूर बहुत,
पिछली यादों के साथ,
वो चूल्हे बाली रोटी,
अम्मा के बनाते हाँथ,।।।
गोविन्द कुमार गुप्ता,
लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश